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तालीम से बारिश होने के बाद मुहर्रम 1335 हि० में आाप मदरसा मजाहिरल उलूम में मुर्रिस हो गये।
शुरू में इब्तिदाई किताबें पढ़ने को मिली, ‘उसूले शाशी’, সल्मुस्सीगा, इससे अगले साल में मकामाते हरीरीं ‘सबज: मुअल्लक, पढ़ाओ।
इसके बाद मिश्कात पढ़ाई और ये सब किताबें बड़ी मेहनत और मुताला से पढ़ायीं मुद्िसी के छठे या सातवें साल में आप के पास बुखारी शरीफ के तीन पारे आए और उनके साथ ही मिश्कात भी जारी रही।
हज़रत मौलाना खलील अहमद साहब सहारनपुर का मदरसा मजाहिर उलूम के शेखुल हदीस में और हज़रत लूत हदीस रह. के उस्ताद और पीर व मुर्शिद थे।
उन्होंने जब अबूदाऊद शरीफ की शरह ब्लू महूद लिखना शुरू की तो उस में शुरू ही से हज़रत संस्कृत हदीस रह० को अपने काम में मददगार की हैसियत से रसखान |
किताबों में मजामीन तलाश करना उन को मुनासिब मक़ामात पर हज़रत मौलाना खलील अहमद साहब रह की हिदायत के मुताबिक कृत करना और जो इम्ला करायें,
उसको लिखना यह काम हज़रत शैखुल हदीस साहब रह करते रहे । आखिरी दौर में कुछ और जिम्मेदारियां भी आप के सुपुर्द हो गयी पीं।
हजरत मौलाना खलील अहमद साहब सहारनपुरी को हज़रत रह. के ऊपर काफी एतमाद था और आप के काम से खुश थे,
इस लिए जब आप ने हज का इरादा किया तो हज़रत शेखुल हदीस साहब को भी अपने साथ ही ले गये। वहां भी शरहा अबूदाऊद का काम जारी रहा और शेखुल हदीस साहब रह,
असिस्टेंट रहे, क्योंकि असल गरज आप के साथ जाने की यही थी कि शरह अबूदाऊद के काम में मदद देखते हैं, चुनांचे हजरत सहारनपुरी ने वहां मुस्तकिल कियाम फ़रमाया ।
तालीम से फारिग होने के बाद मुहर्रम 1335 हि में बाप मदरसा मज़ाहिरुल उलूम में मुदर्रिस हो गये। शुरू में इब्तिदाई किताबें पढ़ाने को मिली, ‘उसूले शासी, ‘इत्युरसीमा’, इससे अगले साल में ‘मकामाते हरीरी’ ‘सबअ: मुअल्लक’, पढ़ाए।
इसके बाद मित्रकात पढ़ाई और ये सब किताबें बड़ी मेहनत और मुताला से पढ़ायीं मुदर्रिसी के छठे या सातवें साल में आप के पास बुखारी शरीफ के तीन पारे आए और उनके साथ ही मिश्कात भी जारी रही।
हज़रत मौलाना खलील अहमद साहब सहारनपुरी जो मदरसा मज़ाहिरे उलूम के शैखुल हदीस ये और हज़रत शेखुल हदीस रह के उस्ताद और पीर व मुर्शिद थे।
उन्होंने जब अबूदाऊद शरीफ़ की शरह ‘बज्लुत मज्जूद लिखना शुरू की तो उस में शुरू ही से हज़रत शैखुल हदीस रह० को अपने काम में मददगार की हैसियत से रखा।
किताबों में मजामीन तलाश करना उन को मुनासिब मकामात पर हज़रत मौलाना खलील अहमद साहब रह० की हिदायत के मुताबिक नकल करना और जो इमला करायें, उसको लिखना यह काम हज़रत शैखुल हदीस साहब रह० करते रहे।
आखिरी दौर में कुछ और जिम्मेदारियां भी आप के सुपुर्द हो गयीं थीं।
हज़रत मौलाना खलील अहमद साहब सहारनपुरी को हज़रत रह के ऊपर काफी एतमाद था और आप के काम से खुश थे, इस लिए जब आप ने हज का इरादा किया तो हज़रत शैखुल हदीस साहब को भी अपने साथ ही ले गये।
वहां भी शरह अबूदाऊद का काम जारी रहा और शेखुल हदीस साहब रह० असिस्टेंट रहे, क्योंकि असल गुरज़ आप के साथ जाने की यही थी कि शरह अबूदाऊद के काम में मदद देते रहें, चुनांचे हज़रत सहारनपुरी ने वहां मुस्तकिल कियाम फरमाया।
लेकिन मदरसा ? मज़ाहिरे उलूम में मुदर्रिस की ज़रूरत थी, वहां के तकाजे की वजह से हज़रत सहारनपुर हज़रत खुल हदीस साहब रह० को शैलुल हदीस के ओहदे पर लगा कर हिंदुस्ता भेज दिया और बैजत की इजाजत भी दे दी।
लेखक | मुहम्मद जाकरिया-Muhammad Zakariyya |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 1091 |
Pdf साइज़ | 42.4 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |